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सिद्धाश्रम ज्ञानगंज कालमुख सम्प्रदाय

Siddha Ashram Gyanganj

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AGHOR

अघोर अर्थात भयानक किंतु अघोर भयानक नहीं है घोर का अर्थ होता है साधारण तरीके से जीने का तरीका अघोर जो असंभव को संभव कर दे अघोर अर्थात प्रकृति के संग चलने वाला सामान्य व्यक्ति

means terrifying — yet it is not terrifying.
‘Ghor’ refers to living in an ordinary, limited way.
Aghor is that which makes the impossible possible.
Aghor is one who walks in harmony with nature — a truly simple and natural being.

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Kaalmukh

 कालमुख संप्रदाय के लोग प्रकृति के संग चलना पसंद करते हैं। इस संप्रदाय अपने जीवन शैली  को पूर्णता साधारण तौर पर जीना पसंद करते है इस संप्रदाय के अघोरी लग भग पृथ्वी पर ६३ बचे हुए हे इनका लक्ष्य असंभव को सम्भव करना हे । ये लोग  पृथ्वी  के संतुलन में एक खोजी रूप में अपने कार्य को कर रहे हैं ना ही इनके लिए प्रकृति का कोई भी मौसम लागू होता हे आप शिव महापुराण या स्कंद पुराण का अध्ययन करेंगे तो देखेंगे इस संप्रदाय के १८ अवतार का उल्लेख पृथ्वी  का साथ निर्माण और विनाश का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलेगा ये लोग अल्पाहारी होते हैं और बहुत जिद्दी साथ मे चरम पंथी होते हे किंतु इनका दिल बहुत ही नरम और जीवन हसमुख होता हे ये अपने उद्देश्य को पृथ्वी के अंतिम दिनों में लक्ष्य के साथ पूर्ण  करेंगे कुछ चीजे  उल्लेख नहीं किया जा सकता इसके पीछे कुछ वास्तविकता पर्दे के पीछे रखकर आगे की और चलना चाहिए इस संप्रदाय के ६३ अस्त्र अपने समय के अनुसार कार्य में अग्रसर है।।

                         शैव संप्रदाय के संस्थापक लकुलीश थे. इन्हें भगवान

शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है कालमुख संप्रदाय शिव के १८ अवतार में वर्णित हे जिसका उल्लेख स्कंद पुराण आयुर्वेद और शिव महापुराण में मिलता है । कालमुख संप्रदाय के लोग मूलतः मध्य युगीय  शैव संप्रदाय से संबंध रखते हे ।कुछ लोगों का मानना हे कालमुख संप्रदाय पशुपत संप्रदाय के एक शाखा है पर ये पूर्णता गलत हे क्योंकि कालमुख संप्रदाय शिव का १८ अवतार है वो किसकी शाखा और प्रशाखा नहीं हो सकता काल मुख संप्रदाय के लोग अघोरियों का वो संप्रदाय हैं जो समय के संग चलना और मृत्यु का सामना करना यही लक्ष्य हे ये लोग यंत्र मुद्रा और मंत्र का उच्च कोटि पर मनन कर अस्तित्व पर लाते है। तिरु मंदिर के ६ विचार धारा में उदय अर्थात सूर्य के तरह चमक ने वाला काल मुख संप्रदाय है। ये लोग रूढ़िवादी और कला जादू के विरोध में स्वयं का अस्तित्व को दिखा देते हैं। कर्नाटक के धारवाड़ और शिमोगा जिला में शक्ति परिषद और सिंघ परिषद दो भाग में विभाजित करते थे रामेंद्र नाथ नंदी के अनुसार ८०७ ईसापूर्व राष्ट्रकूट बांस द्वारा जारी रिकॉर्ड में काल मुख संप्रदाय का वर्णन मिलता है । हालांकि आठवीं शताब्दी में मैसूर में एक बहुत बड़ा काल मुख संप्रदाय का मठ विद्यमान हे । वैष्णव संप्रदाय के आचार्य रामानुज ने अपने पुस्तक श्री भाष्य कार्य में काल मुख संप्रदाय को कापालिकों के संग जोड़ कर भ्रमित किया ये सत्य है काल मुख संप्रदाय। के आघोरी खोपड़ी में खाना और खोपड़ी में ही तरल पदार्थ का भक्षण किया करते हे रामानुज ने एक सत्य को अपने पुस्तक में दर्शाते हुए ये बताया कि काल मुख संप्रदाय के जो अघोरी होते हे वो श्मशान क्रिया के लिए क्षणिक रूप से श्मशान में प्रवेश करते हे और मुर्दों का मांस प्रसाद के रूप में ग्रहण करके अपने क्रिया को संपन्न कर निकल पड़ते हे" काल मुख एक मजबूत सामाजिक आधार वाले सामाजिक और धार्मिक सुधारों का आधुनिक शैव संप्रदाय के खोजी अघोरी है " फिर भी  कोई बरसो तक अर्जी भंडारकर जैसे विद्वानों ने कालमुख संप्रदाय के अघोरियों को कापालिकों की तुलना में अधिक चरम पंथी संप्रदाय माना जब की उन्होंने स्क्वायर किया रामानुज के लिखित विवरण भ्रमित करने वाला है शिला लेखों में इसे अभिलेखों साक्ष्य का जो भी  विवरण मिलता हैभंडार कर अन्य लोगों के द्वारा लिखित प्रमाण है ।।
 

Siddhasram Gyanganj

तिब्बत धरती पर सबसे खूबसूरत और अछूते क्षेत्रों में से एक है। यह सुदूर क्षेत्र न केवल रोमांच प्रेमियों को बल्कि उन यात्रियों को भी आकर्षित करता है जो अपने जीवन में अस्तित्व के गहरे अर्थ को खोजने के उद्देश्य से निर्देशित होते हैं। पिछली शताब्दी तक रहस्य में डूबा और बेहद दुर्गम, तिब्बत अभी भी काफी हद तक अज्ञात और अनदेखा है और जो बात इस हिमालयी क्षेत्र को और भी दिलचस्प बनाती है, वह है इससे जुड़े विभिन्न मिथक और किंवदंतियाँ। ऐसे ही एक मिथक ने कई लोगों की दिलचस्पी को आकर्षित किया है, जिसके कारण कई तरह की बहसें, जाँच और किताबें लिखी गई हैं। ऐसी कौन सी चीजें या घटनाएँ हैं जो हैं? ऐसा क्यों है? ये सभी सवाल अभी भी प्रश्नचिह्न बने हुए हैं। आज हम हिमालय की घाटियों के एक ऐसे रहस्य का जिक्र करने जा रहे हैं जिसके सामने विज्ञान ने भी घुटने टेक दिए हैं। यहां हम ज्ञानगंज मठ के बारे में बात कर रहे हैं। यह हिमालय में स्थित एक छोटी सी जगह है जिसे शांगरी-ला, शम्भाला और सिद्धाश्रम के नाम से भी जाना जाता है। ज्ञानगंज मठ में केवल सिद्ध महात्माओं को ही स्थान मिलता है। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि यहाँ रहने वाले हर व्यक्ति का भाग्य पहले से ही तय होता है और यहाँ रहने वाला हर व्यक्ति अमर है।  यहाँ कोई नहीं मरता l आधुनिक समय में ज्ञानगंज तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के पास स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर एक आश्रम है, जिसका निर्माण परमहंस सच्चिदानंद जी ने कराया था। कहा जाता है कि यहां हजारों वर्षों से सैकड़ों ऋषियों को ध्यान करते देखा जा सकता है। परमहंस त्रिजटा अघोरी जी ने ही सबसे पहले लोगों को इस स्थान के बारे में जानकारी दी थी। शांगरी-ला एक तिब्बती शब्द है। जो शांग माउंटेन पास से मिलता जुलता है। इसलिए ऐसा लगता है कि यह स्थान कुनलुन शांग माउंटेन की घाटियों में कहीं स्थित है। शांगरी-ला घाटी का अनुमानित क्षेत्रफल 10 वर्ग किलोमीटर है। लांपियाधुरा दर्रा भारतीय सीमा से शांगरी-ला घाटी तक पहुंचने का मार्ग है। यह कैलाश मानसरोवर जाने का सबसे पुराना लेकिन बेहद कठिन मार्ग है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लांपियाधुरा जाने का मार्ग लगभग बंद हो गया है।  प्राचीन काल में कैलाश मानसरोवर जाने वाले साधु-संत उत्तराखंड के धारचूला, गुंजी, कुंती और पार्वती ताल से होते हुए करीब 18000 फीट की ऊंचाई चढ़कर लांपियाधुरा दर्रे तक पहुंचते थे। माना जाता है कि शांगरी-ला घाटी यानी ज्ञानगंज यहां से करीब 1500 फीट नीचे कैलाश मानसरोवर के तलहटी में स्थित है। लेकिन चौथे आयाम में होने के कारण इसे आम लोगों की नजर से परे माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि चीनी सेना ने कई बार इस स्थान को खोजने की कोशिश की लेकिन असफल रही। इस सिद्धाश्रम या मठ का उल्लेख महाभारत, वाल्मीकि रामायण और वेदों में भी मिलता है। अंग्रेजी लेखक जेम्स हिल्टन ने भी अपने उपन्यास 'लास्ट होराइजन' में इस स्थान का जिक्र किया है। प्राचीन ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, ज्ञानगंज आठ पंखुड़ियों वाले कमल की संरचना जैसा दिखता है।वैदिक मान्यता के अनुसार ज्ञानगंज के योगी जो कलमुख संप्रदाय से होंगे पृथ्वी पर 85 ऐसे तत्वों के निर्माण में लगे हैं जो भविष्य में ज्ञानगंज के उस कमल कुंज को पृथ्वी पर ज्ञानगंज के उद्देश्य को पूर्ण करेंगेl यह बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। जीवन का वृक्ष जो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल को जोड़ता है, इसके केंद्र में खड़ा है। जिन लोगों ने ज्ञानगंज या शम्भाला देखा है, उनके लिए यह एक जगमगाता हुआ शहर है। इसके निवासी अमर हैं जो दुनिया के भाग्य का मार्गदर्शन करने के लिए जिम्मेदार हैं। इस रहस्यमय साम्राज्य के भीतर रहते हुए वे सभी धर्मों और मान्यताओं की आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा और पोषण करते हैं। दूसरों को अपना ज्ञान देकर वे मानव जाति के भाग्य को अच्छे के लिए प्रभावित करने का काम करते हैं। तिब्बती बौद्धों का मानना है कि जब दुनिया में अराजकता बहुत बढ़ जाती है, तो इस विशेष भूमि का 25वां शासक पृथ्वी को बेहतर युग की ओर ले जाने के लिए प्रकट होगा।

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Trijata Aghori

त्रिजटा अघोरी एक अघोरी है जिनके पास शव को पुनर्जीवित करने की क्षमता है. ये उन कम संतों में से एक थे जिनके पास मृत संजीवनी विद्या थी. त्रिजटा अघोरी के बारे में कुछ और बातें: त्रिजटा अघोरी के बारे में एक कहानी है कि ये केरल से बनारस आए थे ताकि कालूराम अघोर परंपरा को बचाया जा सके. इस कहानी में त्रिजटा अघोरी और नगरवधु अनंगसेना की बात भी आती है. त्रिजटा अघोरी ने कहा था कि जिस साधक ने यह दिव्यतम साधना पूरी कर ली, उस पर कभी शत्रु हावी नहीं हो सकते. उन्होंने यह भी कहा था कि वह जहर से नहीं मर सकता, न उस पर आक्रमण से सफलता मिल सकती है, और न ही उसकी अकाल मृत्यु हो सकती है.

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